आर्य और काली छड़ी का रहस्य-42
अध्याय-14
सौदेबाजी
भाग-3
★★★
आर्य और बूढ़ी औरत अब नीचे आ गए थे। दोनों ही एक दूसरे के आमने सामने बैठे थे। उस मेज से लगी कुर्सियों पर जो नीचे मौजूद था। बूढ़ी औरत ने पेय पदार्थ का एक और प्याला भर कर रख दिया था। मगर आर्य ने उसे देखा तक नहीं था।
बातचीत की शुरुआत बूढ़ी औरत ने की। वह बोली “देखो, मैं तुम्हें अब जो भी कहने जा रही हूं, यकीनन तुम पहली बार में उस पर विश्वास नहीं करोगे। क्योंकि यह एक ऐसी चीज है जो सिर्फ तुम्हारे साथ ही पहली बार होने जा रही है। मैंने आज से पहले अपनी बातचीत में सोदे के तौर पर कभी खुद से पेशकश नहीं की। हां, मेरे लिए भी यह नया है तो मुझे भी अजीब सी बेचैनी हो रही है। मेरे शरीर में खून के अजीब से बुलबुले उठ रहे हैं जो मुझे इस अजीब बेचैनी का एहसास करवा रहे हैं।”
आर्य ने कमरे में राजकुमार जैसा एटीट्यूड ले लिया था। वो एटीट्यूड यहां भी उसके चेहरे पर दिखाई दे रहा था। आर्य ने कहा “तुम अपनी बात सामने रख दो, हो सकता है इसके बाद तुम्हारी बेचैनी कुछ कम हो जाए।”
बूढ़ी औरत यह सुनकर उसे टकटकी लगाकर देखने लगी। उसने अपना दायां हाथ उठाया और उससे अपने चेहरे के दाई और कि दोनों आंखों को साफ किया। वह बेरहमी से अपनी आंखों को साफ कर रही थी। मतलब उसने इस बात का ख्याल भी नहीं किया कि इससे उसकी आंखें खराब हो सकती है। यह करने के बाद उसने एकदम से कहा “तुम मुझे मेरी जिंदगी बख्श दो... असल दुनिया में जो हमला मेरी और आ रहा है मेरे पास उसका तोड़ नहीं है। और अगर वह हमला नहीं रुका तो मैं और मेरी यह दुनिया हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।”
आर्य जानता था। वह जानता था उसकी योजना जरूर काम करेगी। अगर उन मंत्रों का तोड़ और किसी के पास नहीं है तो काली छड़ के पास भी मंत्रों के तोड़ ना होने की पूरी संभावना थी।
फिलहाल बूढ़ी औरत ने अपनी बात में और चीजें भी जोड़ी। वह बोली “अगर तुम ऐसा करते हो तो मैं तुम्हें इस बात की मंजूरी देती हूं कि आने वाले भविष्य में तुम कभी भी किसी भी मौके पर मेरा एक बार इस्तेमाल कर सकते हो। वह भी बिना किसी सौदे के। यही मेरी वह पेशकश है जो मैं तुम्हें दे रही हूं। मेरी तरफ से एक सौदा। मेरी जान के बदले मुझे एक बार इस्तेमाल करने की इजाजत, बिना किसी दूसरे सौदे के। बताओ क्या कहते हो...?” यह कहकर उसने सब कुछ आर्य पर छोड़ दिया।
आर्य का दिमाग इस वक्त बिजली की रफ्तार से दौड़ रहा था। एक तो वह काली छड़ी के पूरे खेल में एक कदम आगे था, और दूसरा उसने अपनी दूसरी योजना की तैयारी भी कर ली थी। वह हर मामले में अब बढ़त बना चुका था। आर्य ने अपने एटीट्यूड वाले अंदाज को जारी रखते हुए कहा “इस सौदे से आखिर मुझे क्या फायदा? मुझे इस वक्त किसी भी सौदे की जरूरत नहीं। तुम्हें लगता है मैं बिना किसी जरूरत के भी तुमसे किसी तरह का कोई सौदा करूंगा।”
“अभी नहीं मगर भविष्य में तो कभी जरूरत पड़ सकती है।” बूढ़ी औरत थोड़े दयायाचिका करने वाले अंदाज में बात कर रही थी। “यह मत भूलो तुम लोग एक बड़ी जंग लड़ने की तैयारी कर रहे हो। आने वाले भविष्य में तुम लोगों का सामना भी शैतान से होने वाला है। वह शैतान जो क्या-क्या कर सकता यह तो तुम देख ही चुके हो। अगर वह मेरी जैसी चीज बना सकता है तो उसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं। ऐसे में कभी भी कोई ऐसा मौका आ सकता है जहां तुम्हें मेरी जरूरत पड़े। मेरे शक्तिशाली और ना टूटने वाले मंत्रों की जरूरत पड़े। तुमने तो चलो अपनी तलवार की वजह से इसका तोड़ निकाल लिया, मगर सब के पास रोशनी वाली तलवार नहीं है। मेरे इस्तेमाल मात्र तक के बारे में सुनते ही तुम्हारे सामने खड़ा होने वाला दुश्मन तुम्हारे सामने टिकने की हिम्मत तक नहीं कर पाएगा। यह सौदा तुम्हारे लिए बिल्कुल भी नुकसान का सौदा साबित नहीं होने वाला।”
“हमारे लिए हमारा सबसे बड़ा दुश्मन तुम्हारा मालिक यानी कि शैतान ही है। और तुम्हारा उसके खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। ऐसे में तुम काम की होने के बावजूद हमारे लिए हमेशा एक ना काम आने वाली चीज रहोगी।”
बूढ़ी औरत को हल्का सा गुस्सा आ गया। कहीं-कहीं आर्य का अंदाज भी उसे चिढ़ा रहा था। आर्य अपनी बातों में साफ-साफ उसके सोदे को बे मतलब और बिना किसी काम का बता रहा था। बूढ़ी औरत ने अपने स्वर को थोड़ा सा बदलकर तेज करते हुए कहा “लेकिन शैतान से पहले तुम लोगों को और भी कई सारे खतरों का सामना करना है। शैतान की एक बड़ी सेना है जिसमें कितनी अंधेरी परछाइयां शामिल है उसकी गिनती तक नहीं। उनके पास कुछ ऐसे योद्धा भी हैं जो तुम्हारे आश्रम की एक-एक अचार्य पर भारी पड़ेंगे। फिर शैतान की सेना का नेतृत्व करने वाले छह सिपेसहलार जो अभी तक इस जंग में शामिल भी नहीं हुए। सिर्फ एक सिपेहसालार के आगे तुम्हारा पूरा आश्रम एकजुट होकर भी खड़ा हो गया, तब भी उनका सामना नहीं किया जा सकता। तुम लोगों का आने वाला रास्ता सिर्फ और सिर्फ कांटों और मुसीबतों से भरा है, हजारों गढ्ढे इस रास्ते में तुम लोगों का इंतजार कर रहे हैं। और इस मुश्किल घड़ी में तुम्हें कभी ना कभी मेरी जरूरत पड़ेगी ही।”
इस बार बूढ़ी औरत का अंदाज अलग था तो उसने आर्य को थोड़ा सोच में डाल दिया। “ठीक है। एक बार मान लेता हूं कि तुम्हारा सौदा कभी ना कभी मेरे काम आएगा। मगर मुझे यह बताओ, इस बात के क्या प्रमाण है कि तुम अपने वादे से मुकरोगी नहीं। हो सकता है तुम ऐन मौके पर पीछे हट जाओ। तुम्हें तो पता ही है हमारी दुश्मनी अंधेरे के साथ है, ऐसे में हम तुम्हारा इस्तेमाल करेंगे तो अंधेरे के खिलाफ ही करेंगे। वह सब तुम्हारे साथी होंगे। इस बात की पूरी संभावना है कि तुम अपने साथियों को अपनी वजह से खत्म होता देख दुखी हो जाओ, या तुम्हारे दिल में उनके लिए स्नेह जाग जाए, ऐसा स्नेह जो तुम्हें अपने वादे से मुकरने के लिए मजबूर कर दे। तुम पर तो अभिशापित मंत्र का भी असर नहीं होगा, क्योंकि वह तुम्हारे ही मंत्र है और तुम्हारे द्वारा ही इस्तेमाल होते हैैं।”
“इसीलिए तो मैंने तुम्हें विश्वास की बात कही थी। मैं ऐसा करूंगी या नहीं इसके लिए तुम्हारा मुझ पर विश्वास करना जरूरी है। तुम्हारा विश्वास जीतने के लिए मैंने तुम्हें वह कमरा दिखाया जो मैंने शैतान के स्वागत के लिए तैयार करके रखा था। और जिसे मैंने आज से पहले किसी को भी नहीं दिखाया था। मगर उस चीज से मैं तुम्हारा विश्वास नहीं जीत पाई। या फिर यह कहना ठीक रहेगा कि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं हुआ। तो तुम अब यहां अपना कोई भी सवाल पूछ सकते हो, ऐसा सवाल जिसे जानने के बाद तुम्हें मुझ पर विश्वास हो जाए।”
आर्य ने अपना चेहरा बिल्कुल शांत कर लिया। उसके चेहरे पर अब ना तो एटीट्यूड वाले भाव थे, ना ही किसी तरह की चीज के सोचने के भाव, ना ही हैरान होने या दिलचस्पी लेने वाले भाव। वह बस भावहिन था। उसने अपनी इसी भावहीनता के साथ कहा “अगर बात सवाल पूछने और उसका जवाब जानने की है, तो मैं बस तुमसे एक ही सवाल पूछूंगा जिसका तुम्हें मुझे जवाब देना होगा। एक ऐसा जवाब जो विस्तारपूर्वक हो। यानी तुम किसी दूसरे तरीके से घुमाने फिराने वाला जवाब देकर जवाब को उलझाओगी नहीं। बस सीधा और स्पष्ट जवाब जो विस्तारपूर्वक हो।” बूढ़ी औरत कुर्सी पर आगे की तरफ झुक गई। वह इस बात को लेकर संशय में थी कि आखिर आर्य कौन से सवाल का जवाब जानना चाहता है। वही आर्य ने भी आगे की तरफ झुकते हुए अपने एक एक शब्द को जोर देकर सवाल पूछा “क्या—होगा—अगर—तुमने—शैतान—की—बात—मानने—से—मना—कर—दो?”
यह सवाल सुनते ही बूढ़ी औरत सहम उठीं। उसने इस बात की बिल्कुल उम्मीद नहीं की थी आर्य उससे इस तरह का सवाल करेगा। वहीं आर्य इस सवाल के बारे में तभी सोच चुका था जब उसने अपनी दूसरी योजना को रूप देना शुरू कर दिया था। बूढ़ी औरत अपनी जगह से खड़ी हुई और आर्य से दूर चलते हुए अपना चेहरा दीवार की तरफ कर लिया। वह इस बात को नकार नहीं सकती की इस सवाल के जवाब में एक ऐसी संभावना है जो उसके मालिक के लिए किसी बड़े अपशकुन से कम नहीं। यह उसके मालिक से एक तरह की गद्दारी होगी। उसने दीवार की तरफ अपने चेहरे को करते हुए कहा “तुमने मुझे एक ऐसे धर्म संकट में डाल दिया है जहां मुझे मेरी जान और मेरे मालिक की जान में से किसी एक को चुनना है। तुम अपने सवाल को बदल दो। मुझे नहीं लगता मैं इस सवाल का जवाब दे पाऊंगी।”
आर्य अपनी जगह से खड़ा हो गया। “मगर तुमने विश्वास की बात की है। और विश्वास के लिए जरूरी है कि मुझे किसी गहरे राज के बारे में पता चले। वरना सौदेबाजी का फायदा क्या। अगर तुम इस सवाल का जवाब दोगी तभी मुझे विश्वास होगा तुम अपनी तरफ से पूरी ईमानदारी बरतोगी। वरना हम दोनों में विश्वास वाली कोई बात ही नहीं रहेगी। और अगर किसी तरह का विश्वास नहीं रहेगा तो सौदा नहीं होगा। फिर सौदा ना होने पर आगे के परिणामों के बारे में तो तुम जानती ही हो।”
बूढ़ी औरत उसकी और मुड़ी “मुझे सोच लेने दो। यह कोई ऐसी वैसी बात नहीं जो बिना सोचे समझे बताई जा सके। मुझे देखना होगा इसमें कहीं मेरे मालिक को किसी तरह का नुकसान तो नहीं पहुंच रहा।”
बूढ़ी औरत के दोनों ही तरफ दो-दो हाथ थे। उसने अपनी बाईं और के दो हाथों में से एक हाथ को ऊपर किया और सर को खुजाते हुए गहरी सोच में पड़ गई। वही आर्य अपनी जगह से खड़ा हुआ था तो उसे सोचता देख वह वापस बैठ गया। बैठने के बाद उसने पेय पदार्थ को उठाकर देखा मगर इसके बाद उसने उसे वापस रख दिया। एक बार के लिए वह उसे पीने का सोच रहा था मगर दुश्मन के घर वाला ख्याल आते ही उसने अपना इरादा बदल दिया। उसने अपने दोनों हाथों को अपने बाजुओं में लिया और बूढ़ी औरत के जवाब का इंतजार करने लगा।
बूढ़ी औरत कुछ देर के लिए सोचती रही। इसके बाद वो खुद से धीरे-धीरे बड़बड़ाती हुई बोली “शैतान मुझे कभी भी अपनी मौत का कारण नहीं बनने देगा... अगर ऐसा कुछ होता है तो वह ऐसा कुछ होने से पहले ही मुझे खत्म कर देगा। यानी इसे बताने पर मेरे मालिक को किसी भी तरह का खतरा नहीं आने वाला। अगर किसी तरह का खतरा आएगा तो मुझे ही आएगा और मेरे मालिक मुझे कभी खतरे में पड़ने नहीं देंगे। वह यहां मुझे खत्म करने की बजाय कोई दूसरा रास्ता निकाल लेंगे। हो सकता है वह छड़ी के इस्तेमाल की प्रक्रिया में कुछ और बदलाव कर दे। ऐसे बदलाव जो उन्हें इस तरह की स्थिति से भी निकाल दें। उन्होंने पहले भी तो काफी बदलाव किए हैं, और हर बदलाव में उन्हें सफलता मिली है, इन बदलावों में भी उन्हें सफलता मिलेगी। मेरे मालिक को इससे कोई भी खतरा नहीं है।” इतना कहकर उसने खुद को दिलासा देते हुए कहा “हां, मेरे मालिक को इससे कोई खतरा नहीं है। मैं लड़के को जवाब दे सकती हूं। मैं दे सकती हूं।”
सब कुछ सोच समझ लेने के बाद बूढ़ी औरत ने सोचना बंद किया और आर्य की तरफ देखते हुए कहा “तुम्हें तुम्हारे सवाल का जवाब मिलेगा.... मैं तुम्हें तुम्हारे सवाल का जवाब देने के लिए तैयार हूं।”
यह सुनते ही आर्य के चेहरे पर मंद मंद मुस्कान आ गई। सामने की बूढ़ी औरत नहीं जानती थी कि उसने जो योजना तैयार की है यह उसके सफल होने का पहला चरण था। इस सवाल के जवाब से ही उसकी योजना को रूप मिलने वाला था।
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